यागंती उमा महेश्वर मंदिर, आंध्र प्रदेश

अनोखी बात ये है की इस मंदिर में मौजूद नंदी महाराज की प्रतिमा बड़े ही रहस्यमय तरीके से विशालकाय होती जा रही है

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित यज्ञंती उमा महेश्वर मंदिर हमारे देश की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। यह मंदिर जितना अद्भुत है अपने आप में उतने ही रहस्य समेटे हुए है। इस मंदिर में नंदी महाराज की मूर्ति लगातार रहस्यमय तरीके से विशाल होती जा रही है, जिसके कारण यह यज्ञंती उमा महेश्वर मंदिर चर्चा में है।

20 साल में 1 इंच बढ़ती है मूर्ति -

इस यागंती उमा महेश्वर मंदिर में स्थापित नंदी की मूर्ति का आकार हर 20 साल में लगभग एक इंच बढ़ जाता है। इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए पुरातत्व विभाग की ओर से शोध भी किया गया था। इस शोध के अनुसार कहा जा रहा था कि इस मूर्ति को बनाने में जिस पत्थर का प्रयोग किया गया है उसकी प्रकृति में वृद्धि होने वाली है। इस कारण मूर्ति का आकार बढ़ रहा है।

क्या सच में जीवित हो जाएंगे नंदी –
नंदी के बारे में मान्यता है कि एक दिन ऐसा आएगा जब नंदी महाराज जीवित होंगे, उनके जीवित होते ही इस दुनिया में एक महान जलप्रलय होगा और यह कलियुग समाप्त हो जाएगा।

पुष्करिणी का रहस्य –

इस यागंती उमा महेश्वर मंदिर परिसर में एक छोटा तालाब है, जिसे पुष्करिणी कहा जाता है। इस पुष्करिणी में नंदी के मुख से लगातार पानी गिरता रहता है। लाख कोशिशों के बाद भी आज तक कोई पता नहीं लगा सका कि पुष्करिणी में पानी कैसे आता है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि अगस्त्य ने पुष्करिणी में स्नान करने के बाद ही भगवान शिव की पूजा की थी।

मंदिर का इतिहास –

इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का ने करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि अगस्त्य इस स्थान पर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर बनाना चाहते थे, लेकिन मंदिर में मूर्ति की स्थापना के समय मूर्ति का पैर का नाखून टूट गया था। इस घटना के पीछे का कारण जानने के लिए अगस्त्य ने भगवान शिव की तपस्या की। उसके बाद, भगवान शिव के आशीर्वाद से, अगस्त्य ऋषि ने उमा महेश्वर और नंदी की स्थापना की।

भक्त नहीं कर पाते हैं परिक्रमा-

कहा जाता है कि इस यज्ञंती उमा महेश्वर मंदिर में आने वाले श्रद्धालु पहले आसानी से नंदी की परिक्रमा कर सकते थे, लेकिन लगातार बढ़ते आकार के कारण यहां परिक्रमा करना संभव नहीं है। विशाल नंदी को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने वहां से एक खंभा भी हटा दिया है।


मंदिर से दूर भागते हैं कौवे-

कौवे कभी मंदिर परिसर में नहीं आते। ऐसा माना जाता है कि ऋषि अगस्त्य ने कौवे को श्राप दिया था कि वे तपस्या के दौरान गड़बड़ी के कारण कभी भी मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।


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