इस गांव में भगवान वीरा वेंकट सत्यनारायण का एक बहुत प्रसिद्ध और पुराना मंदिर है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
हिंदु धर्मं का ऐसा पवित्र और प्रसिद्ध मंदिर पहाड़ो के सबसे उपरी हिस्से आता है और उस पहाड़ी को सभी रत्नागिरी पहाड़ी नाम से जानते है। उस पहाड़ी का नाम रत्नागिरी ही क्यु पड़ा उसके पीछे भी एक पुराणी कहानी है। ऐसा कहा जाता है एक बार पहाड़ो के देवता मेरुवु और उनकी पत्नी मेनका ने साथ में मिलकर भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी। उनकी कठोर तपस्या को देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने दोनों को दो पुत्रो का वरदान दिया। उनमेसे एक पुत्र का नाम भद्र और दुसरे का नाम रत्नाकर था। भद्र ने भी भगवान विष्णु की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और भगवान ने भी उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे भद्रचलम बनने का वरदान दिया और उसपर प्रभु श्री राम के रूप हमेशा के लिए स्थापित हो गए।
अपने भाई के ही नक़्शेकदम पर चलते हुए रत्नाकर ने भी भगवान विष्णु की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे रत्नागिरी (पहाड़ी) बनने का वरदान दिया और ख़ुद भगवान विष्णु उस रत्नागिरी पहाड़ी पर विराजमान हो गए और जिस रूप में वो विराजमान हुए वो उनका वीरा वेंकट सत्यनारायण स्वामी का अवतार था। कुछ समय बाद भगवान एक जमीनदार श्री आई. व्ही. रामनारायण के सपने में आये और सपने में उससे कहा की मेरा एक मंदिर बनवाओ। उसी के कारण उसने सन 1891 में भगवान के मंदिर का निर्माण करवाया। जो मंदिर आज हम देखते है वो वही पुराना मंदिर है जिसे आज सभी अन्नावाराम मंदिर से जानते है और हा उस मंदिर में भगवान की जो मूर्ति है वो भी उसी पहाड़ी पर की है।
अन्नावाराम मंदिर का निर्माण द्रविड़ी शैली में किया गया है। यहाँ का जो मुख्य मंदिर है वो एक रथ के रूप में बनाया गया है और उसे चार पैय्ये है। मंदिर का जो ढाचा है वो अग्नि पुराण के अनुसार बनाया है ताकि वो प्रकृति की तरह दिखे। मंदिर को रथ के रूप में इसीलिए दिखाया गया क्यु की वो रथ दुनिया के सात लोक को दर्शाता है और सबसे ऊपर में भगवान का गर्भालय है जहासे भगवान ऐसा लगता है की पुरे विश्व को चला रहे है। अन्नावाराम मंदिर के अलावा भी यहापर और महत्वपूर्ण प्रभु श्री राम मंदिर और वन दुर्गा देवी और कनका दुर्गा देवी के मंदिरे भी है और उनकी बड़ी श्रध्दा से पूजा की जाती है।
यात्रियों की सुविधा के लिए मंदिर के सामने ही कल्याण मंडप और गौरी कल्याण मंडप की व्यवस्ता की गयी है। दोनों भी मंडप नए वास्तुकला में बनाए गए है। मंदिर की उत्तरी दिशा में सन जुलाई 1943 में लोगों को समय का पता चल सके इसी लिए वहापर दिल्ली के जंतर मंतर में जैसी घडी है वैसी ही घडी यहापर भी ‘सन डायल’ के रूप में देखने को मिलती है। यहाँ के परिसर में वेद की पाठशाला की व्यवस्था की गयी है ताकि ब्राह्मण के सभी छात्र यहाँ पर पढाई कर सके। पाठशाला में उनके रहने और खाने की भी सुविधा उपलब्ध है। कल्याण के दिनों में और त्योहारों के दिनों में यहापर धार्मिक बातो पर चर्चा का आयोजन कराया जाता है।